अंबिकापुर.संचालनालय पुरातत्व, अभिलेखागार एवं संग्रहालय रायपुर, संस्कृति विभाग छत्तीसगढ़ शासन द्वारा आयोजित तीन दिवसीय राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी *छत्तीसगढ़ का इतिहास: राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य* (राष्ट्रीय संदर्भ में छत्तीसगढ़ के ऐतिहासिक परिदृश्य की खोज) विषय पर छत्तीसगढ़ राज्य योजना आयोग पुरातत्व कार्य समूह के सदस्य राज्यपाल पुरस्कृत व्याख्याता अजय कुमार चतुर्वेदी ने *भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में सरगुजा अंचल के सेनानियों का योगदान* विषय पर राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी में शोध पत्र प्रस्तुत किया ।
पुरातत्व, अभिलेखागार एवं संग्रहालय रायपुर में 16 से 18 फरवरी 2024 तक आयोजित राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी में देश भर के विद्यावानों ने राष्ट्रीय संदर्भ में छत्तीसगढ़ के ऐतिहासिक परिदृष्य पर शोध पत्र प्रस्तुत किया। तीन दिवसीय राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी में उत्तरी छत्तीसगढ़ सरगुजा अंचल से अजय कुमार चतुर्वेदी ने सरगुजा संभाग के 39 स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की खोज कर, भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में उनके योगदान को प्रस्तुत कर सरगुजा के इतिहास को राष्ट्रीय पटल पर स्थान दिलाया। उन्होने बताया कि भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का तृतीय चरण या गांधी युग सन् 1919 से सन् 1947 तक माना जाता है। यह भारत की आजादी का अंतिम निर्णायक आंदोलन था। सरगुजा अंचल के सेनानियों ने नमक सत्याग्रह ,सविनय अवज्ञा आंदोलन, व्यक्तिगत सत्याग्रह, किसान आंदोलन, विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार, जंगल सत्याग्रह, हैदराबाद आर्यसमाज अनदोलन, भारत छोड़ो आन्दोलन और आजाद हिंद फौज में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
नमक सत्याग्रह और सविनय अवज्ञा आंदोलन में योगदान-
नमक सत्याग्रह और सविनय अवज्ञा आंदोलन में सरगुजा अंचल तेजो मुर्तुला वेंकट राव, शिवदास राम, भास्कर नारायण माचवे, आनंद प्रसाद हलधर और धीरेंद्रनाथ शर्मा का उल्लेखनीय योगदान रहा। इन्होंने अंग्रेज सकार का विरोध करना, पुलिस बल के सदस्यों में विद्रोह की भावना भड़काना, पुलिस बल के सदस्यों के अपनी सेवााएं रोकने के लिए प्रेरित करना, अनुशासन भंग करने के लिए प्रेरित किया इसलिए गिरफ्तार कर कड़ी कैद की सजा दी गई।
व्यक्तिगत सत्याग्रह में योगदान-
व्यक्तिगत सत्याग्रह में सरगुजा अंचल के मेवाराम और ज्ञानी दर्शन सिंह ने स्मरणीय योगदान दिया है। मेवाराम को व्यक्तिगत सत्याग्रह में भाग लेने के कारण दिनांक 17 अप्रैल 1941 को छह माह की कठोर सजा हुई थी। ज्ञानी दर्शन सिंह को व्यक्तिगत सत्याग्रह में भाग लेने के कारण 1 वर्ष का कारावास हुआ था।
किसान आंदोलन में योगदान-
रघुनंदन तिवारी “आजाद“ ने 15 जनवरी 1937 में किसान आंदोलन में भाग लिया इसलिए इसी जुर्म में गिरफ्तार कर मई 1937 में 3 माह की कठोर सजा दी गयी।
विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार में योगदान-
राजदेव पांडे को सन् 1931 ई0 में विदेशी वस्तु बहिष्कार तथा शराबबंदी आंदोलन में भाग लेने के कारण 23 फरवरी से 9 मार्च 1931 तक गाजीपुर उत्तर प्रदेश में कारावास हुआ था।
जंगल सत्याग्रह मे योगदान-
जंगल सत्याग्रह मे सरगुजा अंचल के नित्य गोपाल राय और धरम सिंह का महतवपूर्ण योगदान रहा। नित्य गोपाल राय को सन् 1930 ईस्वी में जंगल सत्याग्रह में भाग लेने की जुर्म में 6 माह की कठोर कारावास हुई थी। धर्म सिंह को जंगल सत्याग्रह में भाग लेने के कारण 28 दिन का कारावास हुआ था।
हैदराबाद आर्य समाज अनदोलन मे योगदान-
अमर शहीद बाबू परमानंद ने हिंदू महा सभा की आह्वान पर सोलापुर (महराष्ट्र) मे सत्याग्रही समिति में पूरी ऊर्जा और उत्साह के साथ शामिल हो गए। आप देश भक्ति और राष्ट्र प्रेम को अपनाकर जेल जीवन में भी वंदे मातरम और वैदिक धर्म की जय उद्घोष लगातार करते रहे। आपको इसी अपराध की कीमत देश की खातिर कुर्बानी देकर चुकानी पड़ी। जेल कर्मचारियों ने आदेश उल्लंघन करने के अपराध में बड़ी निर्ममता से कोड़े बरसाते हुए इतनी बेरहमी से पीटा कि 1 अप्रैल 1939 को चंचलागुड़ी जेल में ही आप देश की खातिर शहीद हो गए। आपने 18 वर्ष की अल्प आयु में बलिदान देकर सरगुजा, छत्तीसगढ़ की धरती को धन्य कर दिया ।
भारत छोड़ो आन्दोलन में योगदान-
भारत छोड़ो आन्दोलन में सरगुजा अंचल के महली भगत, अनिल कुमार चटर्जी, मौजी लाल जैन, शिव कुमार सिंह, जगदीश प्रसाद नामदेव, चंदिकेश दत्त शर्मा, अमृतराव घाटगे, प्राण शंकर मिश्र, पन्नालाल जैन, भास्कर नारायण माचवे और घुरा साव ने महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इन्होने ब्रिटिश शासन का विरोध, विदेशी कपड़ों का जलाना, टेलीफोन तार काटना, पूल तोड़ना, रेल पटरियां उखाड़ना, सरकारी स्कूलों का बहिष्कार करना और ब्रिटिश शासन का विरोध करने के साथ ही ग्रामीणों को आजादी के लिए प्रेरित करने का महत्वपूर्ण कार्य किया। ब्रिटिश हुकमम्मत ने इन देश भक्तों को जेल में बंद कर कड़ी यातनाएं दी।
आजाद हिंद फौज में सरगुजा अंचल का योगदान-आजाद हिंद फौज से जूड़कर सरगुजा अंचल का उमेद सिंह रावत, नैन सिंह ठाकुर और श्याम सिंह गिल ने देश को आजादी कराने में चीर स्मरणीय योगदान दिया है। इन्हे ब्रिटिश हुकमम्मत के खिलाफ करने की जुर्म में जेल की कड़ी यातनाएं दी गयी।
शोधकर्ता अजय चतुर्वेदी के द्वारा सरगुजा की लोक संस्कृति, इतिहास, पुरातत्व, पर्यटन, लोक कला और बोलियों को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय राष्ट्रीय शोध संगोष्ठियों में प्रस्तुत किया जा जुका है। इन्होने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में सरगुजा अंचल के योगदान को राष्ट्रीय पटल पर प्रस्तुत कर सरगुजा अंचल को गौरान्वित किया है।