पं. दीनदयाल उपाध्याय केवल नाम नहीं साँस्कृतिक राष्ट्रवाद व एकात्म मानव दर्शन के पर्याय हैं। पंडित दीनदयाल जी का पूरा जीवन चरित्र ही दीनहीनों के प्रति दया,करूणा व सेवा के भाव से ओतप्रोत रहा है। आरएसएस के प्रचारक व जनसंघ के संस्थापक के रूप में उच्चतम आदर्श स्थापित कर सरल व साधारण जीवन जीने वाले दीनदयाल जी के विचार, वक्तव्य, कर्तव्य, आदर्श, लेखन, चिंतन सभी में केवल और केवल अंतिम पंक्ति पर खड़े व्यक्ति का अभ्युदय ही समाहित है। वो कहते हैं “मैले कुचैले कपडों में लिपटे व्यक्ति की सेवा ही वास्तव में नर से नारायण की सेवा है”। दीनदयाल जी द्वारा प्रतिपादित एकात्म मानव दर्शन, सिद्धांत व विचारों के मूल में यही सम्यक भाव है, अपने देश व मातृभूमि के बारे में उनकी स्पष्ट सोंच उन्हें भारत माता के सच्चे सपूत के रूप में एक अलग पहचान दिलाती है। उनका कथन- “हमारी राष्ट्रीयता का आधार भारत माता है, सिर्फ भारत नहीं, यदि इसमें से माता शब्द हटा लिया जाए तो भारत मात्र एक जमीन का टुकडा भर रह जाएगा..” भारत के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की अवधारणा को और मजबूत बनाता है। वर्तमान समय में उनके विचार उनका हर कथन न केवल प्रासंगिक हैं बल्कि नए भारत की नई पीढ़ी को प्रेरणा भी देते हैं। 673/1276 यही वो बेगुसराय रेल्वे स्टेशन का यार्ड हैं जहाँ कुछ कम्युनिस्टों ने इस महान देशभक्त की हत्या कर लाश फेंक दी थी। उनका शरीर अवश्य निष्प्राण कर दिया गया पर उनके विचारों की क्रांति आज भी पवित्र गंगा के जैसे अनवरत प्रवाहमान है। आज विश्व के सबसे बड़े राजनैतिक दल के रूप में स्थापित भारतीय जनता पार्टी के ऐसे पितृपुरूष, युगदृष्टा, देशभक्त, विद्वान मनीषी को कोटि कोटि नमन..
*अटल,अडवाणी,कुशाभाऊ;*
*जब निकले श्यामा,दीनदयाल।*
*त्याग तपस्या बलिदानों की,*
*नींव पर बना संगठन विशाल।।*
✒आलेख-
*संतोष दास ‘सरल’*
अम्बिकापुर