15 October 2025
कविता…”अन्तर्द्वंद”….माँ कह रही थी अब मैं मुस्कुराता नहीं हूं,
राज्य साहित्य कविताएं

कविता…”अन्तर्द्वंद”….माँ कह रही थी अब मैं मुस्कुराता नहीं हूं,

Sarguja express….

 

अपूर्वा दीक्षित ” रचित कविता

माँ कह रही थी अब मैं मुस्कुराता नहीं हूं,

घर से जल्दी निकलता हूँ और वक्त पे’ आता नहीं हूँ।

मैं खुली छोड़ देता हूँ खिड़कियाँ अक्सर, और दरवाजे बंद रखता हूँ,

मैं शांत रहने लगा हूँ ज्यादा अब आवाज़ अपनी मंद रखता हूँ। जो बनाती हैं मैं चुपचाप खा लेता हूँ,

करेला देख मुंह बिचकाता नहीं हूँ,

मैं एक रोटी ज्यादा नहीं मांगता अपनी पसंदीदा सब्जी के साथ,

माँ कह रही थी मैं खाना ठीक से खाता नहीं हूँ!

मैं खोया खोया सा रहता हूं, ठीक से आजकल सोता नहीं हूं,

पापा की डाँट चुपचाप सुन लेता हूं, अब मैं पलट कर बोलता नहीं हूँ,

क्या हुआ पूछने पर सब ठीक है बताता हूँ,

माँ पास बुलाती है बैठने जब तो बात टाल कर निकल जाता हूँ,

मैं खामोश हूं किस वजह से उसे क्यूं बताता नहीं हूं।

अगर, दिल टूटा है मेरा तो क्यों उनकी गोद में सर रख कर रोता नहीं हूं,

मैं खो आया हूँ एक हिस्सा अपना अब रोज़ खिलौने खोता नहीं हूं,

जान गया हूं दुनिया दारी शायद, ख्वाब ज्यादा बुनता नहीं हूं,

लोग गिनवा देते हैं सौ बुराइयां मेरी, खैर मैं किसी की सुनता नहीं हूं!

चल रही है उथल पुथल बहुत जिंदगी में,

अब मैं किसी को मन की बात बताता नहीं हूं,

शायद ही गौर किया हो किसी ने की बदल गया हूं कितना मैं,

लेकिन मां कह रही थी अब मैं मुस्कुराता नहीं हूं…!

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