21 November 2024
“ऐ बारिश चल खेतों में, फसलों को तेरी जरूरत है। ऐ बारिश चल गांवों में, जहां तेरी ख़ातिर मन्नत है”
आयोजन राज्य

“ऐ बारिश चल खेतों में, फसलों को तेरी जरूरत है। ऐ बारिश चल गांवों में, जहां तेरी ख़ातिर मन्नत है”

समाजसेवी स्व. आत्माराम जायसवाल की पुण्यतिथि पर तुलसी साहित्य समिति की सरस काव्य-संध्या

अम्बिकापुर। समाज सेवी स्व. आत्माराम जायसवाल की पुण्यतिथि पर तुलसी साहित्य समिति द्वारा संस्था की कार्यकारी अध्यक्ष कवयित्री माधुरी जायसवाल के निवास पर शायर-ए-शहर यादव विकास की अध्यक्षता में सरस काव्य-संध्या का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पूर्व एडीआईएस ब्रह्माशंकर सिंह और विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ गीतकार अंजनी कुमार सिन्हा, विनोद हर्ष व पेंशनर्स समाज के जिलाध्यक्ष हरिशंकर सिंह थे।
मां भारती व स्व. आत्माराम जायसवाल के छायाचित्रों पर पुष्पार्पण पश्चात् काव्य-संध्या का शुभारंभ कवयित्री माधुरी जायसवाल ने संगीतमय सरस्वती-वंदना की प्रस्तुति देकर किया। गीता-मर्मज्ञ, विद्वान ब्रह्माशंकर सिंह ने कहा कि आत्माराम जायसवाल जी एक समाजसेवी, सज्जन, परोपकारी व कर्मठ इंसान थे। उन्होंने अपने पारिवारिक कर्तव्यों के साथ ही सामाजिक दायित्वों का भी निर्वाह पूरी निष्ठा, ईमानदारी व लगन से किया। उनका त्याग और बलिदान से युक्त जीवन समाज के लिए सदैव पे्ररणास्रोत बना रहेगा। कवयित्री माधुरी जायसवाल ने अपने पिता को श्रद्धा-सुमन अर्पित करते हुए काव्यांजलि अर्पित की- पिता, पिता ही नहीं, मेरी पहचान थे। कोई छोटी-मोटी हस्ती नहीं, मेरी जान थे। कैसे चुकाऊंगी पिता के क़र्ज़ को, जिन्होंने मेरी तक़दीर बनाई है, अपना जीवन छोड़कर मेरे भविष्य की तस्वीर सजाई है! कवि राजेश पाण्डेय ‘अब्र’ ने नम आंखों से पिता को सहज याद किया- हे कर्मपथ के मेरे प्रणेता! वंदन तुझको हरक्षण है। राह जो हमको दिखलाई है, जीवन सफल का लक्षण है। वरिष्ठ गीतकार व संगीतकार अंजनी कुमार सिन्हा ने स्व. जायसवाल को अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि देते हुए कहा- मुक्तिपथ के ओ मुसाफ़िर, है तुझे शत्-शत् नमन, है द्रवित हृदय हमारा, अश्रुपूरित हैं नयन! कल्पना में भी नहीं था, ऐसा कुछ हो जाएगा, हमसफ़र कोई हमारा राह में खो जाएगा। जानकारी जब हुई, कंपित हुआ अंतःकरण! कवि अजय श्रीवास्तव ने अपने भावपूर्ण गीत से नेक सलाह दी- पिता के रास्ते चलना, पिता तुझको संभालेंगे। अगर तेज़ धूप हो जाए वो आंचल में छुपा लेंगे। वरिष्ठ गीत-कवि उमाकांत पाण्डेय के स्मृतिगीत ने सबको भावविभोर कर दिया- हो गई फिर आज आंखें नम किसी की याद में, हो चला फिर मन मेरा उन्मन किसी की याद में! संस्था के अध्यक्ष कवि मुकुंदलाल साहू ने अपने दोहे में माता-पिता की सोहबत में सर्वसुखों की प्राप्ति का मंत्र दिया- पिता ठंड में घाम-से, मां गर्मी में छांव। इनसे मिलते सुख बहुत, शहर रहो या गांव में।
काव्य-संध्या में वर्षाऋतु पर भी उम्दा कविताएं पेश की गईं। प्रख्यात गीतकार पूनम दुबे ‘वीणा’ ने शानदार वर्षागीत सुनाकर दिल के तारों को झंकृत कर दिया- बूंद-बूंद तेरी आस है, बूंद-बूंद तेरी प्यास रे! बूंद-बूंद आकाश है, बूंद-बूंद मेरी सांस रे! व्रिष्ठ कवयित्री गीता दुबे ने कविता- ये सावन की झड़ियां, ये ख़ुशबू की लड़ियां, मन में इन्हें तुम बसा लो – प्रस्तुत कर सबके मन को प्रफुल्लित कर दिया। गीतकार संतोष सरल ने वर्षा का पुरज़ोर आव्हान करते हुए यहां तक कह दिया कि- ऐ बारिश चल पेड़ों में, जिनसे महफ़ूज़ ये कुदरत है। ऐ बारिश चल खेतों में, फसलों को तेरी ज़रूरत है! ऐ बारिश चल गांवों में, जहां तेरी ख़ातिर मन्नत है। कवयित्री गीता द्विवेदी ने भी अपने छत्तीसगढ़ी गीत में भगवान शिव के बावलेपन को बखूबी चित्रित किया- भांग-धतुरा काबर खाए ओ भोला, अब्बड़ गए तय बउराए ओ भोला! बेटियों का महत्व कविवर विनोद हर्ष ने बताया- युगों-युगों का परिणाम बेटियां, हर किसी को नहीं देते राम बेटियां।
गांव के सुकून व चैनभरी ज़िंदगी को छोड़कर कोलाहल भरे शहर में आने का दर्द कवयित्री, अभिनेत्री व मधुर स्वरों की मलिका अर्चना पाठक के मार्मिक गीत में छलक पड़ा- एक छोटा हमारा भला गांव था, ख़्वाहिशों को हम बढ़ाकर शहर आ गए! हो गए जब जुदा, हम किधर आ गए। दर्द में डूबकर हम इधर आ गए! इन कवियों के अलावा हरिशंकर सिंह की कविता- कुछ और नाम देना चाहता था तेरे उस कड़वे अतीत को, चन्द्रभूषण मिश्र ‘मृगांक’ की कविता- शाम बेरूखी के परदे हटा लीजिए, रात ढल चुकी क़सम से मुस्कुरा दीजिए और सारिका मिश्रा की गीत-रचना – करथन खेती-किसानी हमसब छत्तीसगढ़िया, मेहनत हमर हवे चिंहारी, हमहन सबो ले बढ़िया- ने कार्यक्रम में ऊंचाइयां प्रदान कीं। सीमा खानवलकर के भजन व जयंत खानवलकर की लघुकथा ’स्वावलंबी’ भी शिक्षाप्रद रही। शायर-ए-शहर यादव विकास की बेजोड़ ग़ज़ल से कार्यक्रम का यादगार समापन हुआ- आंखें खुली हैं ख़्वाब तेरा देख रहा हूं, इतना तो बेक़रार किसी ने किया नहीं। परछाईं मेरे साथ हमेशा तेरी रही, इतना तो मुझे प्यार किसी ने किया नहीं। हम भी रहे ‘विकास’ ग़ज़ल के मोहल्ले में, मेहबूब में शुमार किसी ने किया नहीं! अंत में, सरगुजा के वरिष्ठ कवि स्व. रामप्यारे रसिक को दो मिनट का मौन रखकर भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की गई। कार्यक्रम का काव्यमय संचालन अर्चना पाठक व आभार माधुरी जायसवाल ने जताया। इस अवसर पर प्रिंस, राजकुमार जायसवाल आदि काव्यप्रेमी उपस्थित रहे।

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