27 July 2024
छत्तीसगढ़ को राजस्थान राज्य से मिल रहे कोयले के राजस्व में हुआ 500 करोड़ से ज्यादा का नुकसान…..राजस्थान राज्य के बिजली घरों में भी कोयले के लिए मची हाहाकार
ख़बर जरा हटके प्रशासन राज्य विडम्बना समस्या

छत्तीसगढ़ को राजस्थान राज्य से मिल रहे कोयले के राजस्व में हुआ 500 करोड़ से ज्यादा का नुकसान…..राजस्थान राज्य के बिजली घरों में भी कोयले के लिए मची हाहाकार

अम्बिकापुर : भारत का सबसे बड़ा कोयला उत्पादक कहा जाने वाला राज्य छत्तीसगढ़ को अब तक 500 करोड़ से ज्यादा के राजस्व नुकसान की बात सामने आयी है। सूत्रों के मुताबिक इसकी वजह राजस्थान सरकार से मिलने वाले सालाना 1000 करोड़ के राजस्व में कमी होना बताया जा रहा है। असल में राजस्थान राज्य द्वारा पिछले 10 वर्षों में छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले में चल रही परसा ईस्ट केते बासेन (पीईकेबी) कोयला खदान के विभिन्न शुल्कों के एवज में अब तक करीब 7000 करोड़ से ज्यादा का राजस्व छत्तीसगढ़ के खजाने में जमा कराया जा चुका है। जिसके बीते छह महीने से बंद होने के बाद जहां एक तरफ राज्य को अबतक 500 करोड़ ज्यादा का नुकसान उठाना पड़ा है। तो वहीं खदान में कार्यरत प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष स्थानीयों को भी बेरोजगार होने का दंश झेलना पड़ रहा है। राजस्थान में राज्य सरकार द्वारा उनके सात ताप विद्युत घरों की स्थापना में करीब 40,000 करोड़ का निवेश किया गया है जिसके संचालन के लिए केंद्रीय कोयला मंत्रालय ने आवश्यक कोयले की आपूर्ति हेतु छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले में तीन कोल ब्लॉकों का आवंटन किया गया है।

पीईकेबी के बंद हो जाने से राजस्थान राज्य के बिजली घरों में भी कोयले की आपूर्ति के लिए कोहराम मच गया है। इसके अलावा राज्य के संयत्रों में बिजली उत्पादन को बरकरार रखने के लिए बाहर से महंगा कोयला खरीदने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। इसके बावजूद राजस्थान में उपजे कोयला संकट के सामने आने के बाद बीते मंगलवार की रात को ही मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा और ऊर्जा मंत्री हीरालाल नागर इसका समाधान खोजने के लिए दिल्ली पहुंचे थे। जहां उन्होंने बुधवार को केन्द्रीय ऊर्जा मंत्री आरके सिंह और केन्द्रीय कोयला मंत्री प्रह्लाद जोशी से मुलाकात कर राजस्थान को इस संकट से उबारने के लिए बातचीत की है। इस दौरान केंद्रीय उर्जा मंत्री और कोयला मंत्री ने सीएम को मदद का आश्वासन दिया है. इस दौरान कोल इंडिया से कोयले की अतिरिक्त रैक देने पर भी सहमति बनी है।

दरअसल राजस्थान राज्य की विद्युत उत्पादन कंपनी के 4340 मेगावाट के चार बिजली घरों के लिए छत्तीसगढ़ में तीन कोयला खदानों, परसा ईस्ट केते बासेन, परसा और केते एक्सटेन्सन का आवंटन हुआ है। परन्तु कंपनी द्वारा पिछले 10 वर्षों में केवल परसा ईस्ट केते बासेन की खदान में ही कोयले के खनन का कार्य शुरू किया जा सका है। इसके द्वितीय चरण में खनन के लिए जरूरी सभी अनुमतियों के बाद भी खनन का कार्य शुरू नहीं किया जा सका। इसकी मुख्य वजह एक बाहरी एनजीओ के संचालक आलोक शुक्ला द्वारा अपने निजी फायदे हेतु कांग्रेस पार्टी के दीपक बैज के का सहारा लेकर हसदेव बचाव के नाम पर बाहरी आदिवासियों को आगे रखकर दुष्प्रचार का खेल खेला जा रहा है। यही कारण है कि जहां छत्तीसगढ़ को करीब 500 करोड़ के राजस्व का नुकसान झेलना पड़ा है तो वहीं अब राजस्थान सरकार के बिजली घरों में कोयले की कमी को लेकर चिंता बढ़ने लगी है।

देश को विकसित देश की राह में अग्रसर करने वाले इस 10 साल पुरानी पीईकेबी कोयला खदान क्षेत्र में 5000 से अधिक लोगों को आजीविका प्राप्त है। जिसे कुछ मुट्ठी भर बाहरी लोगों द्वारा कई फर्जी कहानी बना कर इसे फैलाने के लिए लाखों रुपये सोशल मीडिया पर खर्च किया जा रहा हैं। इसके द्वितीय चरण में खनन के लिए आज तक जमीन न मिल पाने से उदयपुर क्षेत्र की एक मात्र संचालित खदान को बंद कर दिया गया था। इसका खामियाजा क्षेत्रवासियों को बेरोजगार होकर, छत्तीसगढ़ राज्य को मिलने वाले करोड़ों रुपए के राजस्व के नुकसान और राजस्थान सरकार को महंगा कोयला तथा वहां की जनता को महंगी बिजली खरीदकर भुगतना पड़ रहा है।

 

राजस्थान के तत्कालीन कांग्रेसी मुख्यमंत्री ने भी छत्तीसगढ़ को कई बार किया था आग्रह

 

राजस्थान सरकार की सरगुजा में स्थित इन खदानों के लिए आवश्यक भूमि को सौपनें हेतु राजस्थान के तत्कालीन मुख्यमंत्री भी कई बार आग्रह कर चुके थे। यहां तक कि वे छत्तीसगढ़ आकर अपने समकक्ष मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से मिलकर खदान के लिए चाही गई जरूरी जमीन के सभी व्यवधानों को दूर करने की बात रखी थी। जिसके तुरंत बाद इसके लिए कुछ कदम उठाए गए थे। यहाँ तक कि भूपेश बघेल ने खदान का विरोध करने वालों से अपने अपने वातानुकूलित घरों में बिजली बंदकर के रहने और आंदोलन करने की बात भी मीडिया से कही थी जिसे करोड़ों लोगों ने देखा था। किन्तु इसके बाद प्रदेश सरकार के नकारात्मक रवैये ने इसकी प्रक्रिया में तेजी के बजाय पूरी परियोजना को ही बंद करने की कगार पर ला खड़ा किया। इसके अलावा भी इन ग्रामीणों द्वारा 1732 लोगों के हस्ताक्षरित ज्ञापन तारीख को सौंपा गया था। इसके अलावा भी सरगुजा के स्थानीयों द्वारा पूर्व में दिए गए कुछ आवेदन की सूची निम्नलिखित है :

 

आवेदन की तारीख

सरगुजा के सैकड़ों लोगों ने निम्नलिखित को आवेदन सौंपा

10 दिसंबर 2012

काँग्रेस नेता राहुल गांधी सहित तत्कालीन मुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री

1 जून 2021

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को आवेदन दिया।

25 मार्च 2023

राज्यपाल अनुसुईया उइके को आवेदन दिया।

12 फरवरी 2022

सरगुजा कलेक्टर को आवेदन दिया।

29 मार्च 2022

सरगुजा कलेक्टर को आवेदन दिया।

28 मार्च 2022

सरगुजा कलेक्टर को आवेदन दिया।

8 मार्च 2022

स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंह देव को आवेदन दिया।

3 नवंबर 2023

मुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री को आवेदन दिया।

12 दिसंबर 2023

अम्बिकापुर और सरगुजा के विधायकों को आवेदन दिया।

6 दिसंबर 2023

सरगुजा कलेक्टर को आवेदन दिया।

 

वहीं क्षेत्र के पूर्व विधायक श्री टी एस सिंहदेव ने ग्रामीणों से मुलाकात के दौरान वर्तमान में चल रही खदान पीईकेबी को समर्थन देने की बात कही जबकि परसा कोल ब्लॉक से प्रभावित ग्रामीणों की सहमति के बाद ही मैं उनको समर्थन दूंगा।

वहीं अभी हालही में पीईकेबी के लिए पेड़ों के कटने के बाद भी खदान के शुरू न होने से आक्रोशित ग्रामीणों के एक समूह ने 11 जनवरी 2024 को कलेक्टर श्री विलास भोसकर संदीपन को खदान को चाही गई की जमीन उपलब्धता हेतु ज्ञापन सौंपा। जिसमें ग्रामीणों ने खदान का संचालन नहीं होने के कारण खदान में कार्य करने वाले हजारों लोगों के बेरोजगार होकर अपनी रोजी रोटी हेतु भटकने की बात लिखी है।

यह है ग्रामीणों का कहना

ग्राम परसा के ग्रामीण रघुनन्दन सिंह पोंर्ते ने बताया कि, शासन प्रशासन द्वारा 15 दिन पूर्व खदान के संचालन के लिए पेंड़ों की कटाई की गई थी किन्तु अभी तक उक्त भूमि पर खदान का संचालन का कार्य प्रारम्भ नहीं हो सका है जिससे लंबे समय से लोगों को नौकरी एवं रोजगार के लिए भटकना पड़ रहा है। इस खदान के प्रारंभ होने से खदान प्रभावित परिवारों के अलावा आसपास के स्थानीय लोगों के परिवार की रोजी रोटी चलती है।

 

साल्ही के अमीर साय पोर्ते एवं उनके अन्य साथियों ने बताया कि खदान खुलने के पूर्व इन सभी की आर्थिक स्थिति काफी दयनीय थी एवं यहां पर रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य, सहित अन्य मूलभूत सुविधाओं का अभाव था, लेकिन जब से पीईकेबी कोयला खदान चालू हुई है तब से हमारे क्षेत्र का सम्पूर्ण विकास होना शुरू हुआ है।“

 

आज एक राष्ट्रीय मीडिया में प्रकाशित खबर के अनुसार राजस्थान में अभी चार में से तीन ताप बिजली घरों में उत्पादन कोयले की आपूर्ति महंगा कोयला खरीदकर की जा रही है। जबकि बिजली की मांग जनवरी के दूसरे हफ्ते में पहले के मुकाबले अधिक हो गई है। लेकिन यह कोयला इन बिजली घरों में प्रतिदिन के हिसाब से ही खप जा रहा है जबकि केन्द्रीय बिजली बोर्ड के अनुसार प्रत्येक इकाई में लगभग 27 दिनों के कोयले के भंडारण का मानक निश्चित किया गया है। सूत्रों के मुताबिक राजस्थान के स्वामित्व की छत्तीसगढ़ के पीईकेबी खदान से अभी कोयला नहीं आ रहा है। इसलिए सूरतगढ़ थर्मल पावर प्लांट की 250-250 मेगावाट की दो इकाइयों में उत्पादन ठप है। छत्तीसगढ़ कोयला माइंस से राजस्थान को फिलहाल कोयले की रोजाना 21 रैक जरुरत है लेकिन उसे मांग के मुकाबले केवल 17 रैक रोजाना महंगा कोयला खरीदना पड़ रहा है मांग और आपूर्ति में चार रैक का चल रहा अंतर कम नहीं हुआ तो इन तीन थर्मल यूनिट्स में बचा हुआ स्टॉक भी जल्द ही समाप्त जाएगा और हालात बिगड़ जाएंगे. लिहाजा अब राजस्थान को अतिरिक्त कोयले की सख्त जरुरत है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *