12 August 2025
अंबिकापुर शहर के अंतिम छोर में इस ‘वृंदावनवासियों’ को है बुनियादी सुविधाओं की उम्मीद… पर कब पूरी होगी…पता नहीं…
समस्या प्रतिक्रिया मांग राज्य विडम्बना

अंबिकापुर शहर के अंतिम छोर में इस ‘वृंदावनवासियों’ को है बुनियादी सुविधाओं की उम्मीद… पर कब पूरी होगी…पता नहीं…

Sarguja express…..

अंबिकापुर…राजनीतिक दल सत्ता में आने से पूर्व जनता को दिलासा दिलाते है कि हम समाज के अंतिम व्यक्ति को विकास की मुख्यधारा से जोड़ेंगे। गांव नगर के अंतिम छोर तक सड़क, बिजली, पानी, रोड़ लाईट, नाली आदि का निर्माण कर विकास की विकास की गंगा बहायेंगे। सरगवां ग्रामपंचायत का कुछ हिस्सा नगरनिगम क्षेत्र में आता है। जिसे गोधनपुर बस्ती में जोड़ा गया है। यह वार्ड क्रमांक 05 के अन्तर्गत आता है। यहां के निवासीजन इसे वृंदावन नाम दिये है। यह सरगवां पैलेस के पास है लगभग 50-60 घरों की बस्ती है। परन्तु बुनियादी सुविधाओं का मार इस बस्ती के लोग झेल रहे हैं। लोगों ने बताया कि यदि हमारे पास कुबेर का भंडार होता तो बिच शहर में घर बनाते या बड़ी बड़ी कालोनीयों में घर खरीद लेते। हमलोग मध्यमवर्गीय परिवार है। जैसे तैसे घर तो बना लिया परन्तु मूलभूत सुविधाओं की आवश्यकता है। और उम्मीद भी है की यहां तक विकास का मार्ग प्रशस्त होगा।

*भीष्म नारायण पाण्डेय (रिटायर्ड फौजी)* — मुझे यहां का प्राकृतिक सौंदर्य बहुत अच्छा लगा। पास में संजय पार्क है जिसके कारण शुद्ध हवा मिलता रहेगा। भीड़भाड़ से अलग गांव और शहर दोनों का आनंद मिलेगा। अम्बिकापुर नगर निगम की विकास एक न एक दिन यहां तक अवश्य पहुंच जायेंगे। यही सोच कर यहां घर बनाया हुं । सड़क नाली और बिजली बत्ती की समुचित व्यवस्था यदि हो जाये तो आनंद ही आनंद है।

*मुकेश जांन-* (शिक्षक) इस मुहल्ले में धनवान कम शिक्षित व्यक्ति ज्यादा है। जैसा भाईचारा यहां देखने को मिलता है मन खुश हो जाता है। शिक्षित समुदाय के साथ बैठना मुझे बहुत अच्छा लगता है। इस मुहल्ले में लेखक, लेखिका, कवि, कवयित्री, गीत-गायिका, समाजसेवी, सभी प्रकार के लोग हैं। गोरधनपुर चौक से शंकरघाट तक अंधेरा ही अंधेरा रहता है। असामाजिक तत्वों का भय हमेशा बना रहता है। इस लिए रोड़ लाईट की व्यवस्था अनिवार्य है।

*राज नारायण द्विवेदी (समाजसेवी)* – मेरा पुरा जीवन समाजसेवा में बिता, गृहस्थ आश्रम के क्रियान्वयन के लिए समाजसेवी संस्थाओं में नोकरी भी किया। बच्चों को पढ़ाया लिखाया। पैसे का अभाव तो रहा परन्तु किसी से आजतक उधारी नहीं लिया। आवास नहीं था मन में जिज्ञासा तो था की एक घर बन जाये। ईश्वर की ईच्छा हुई और इस बस्ती में घर बन गया। नदी के तट का आकर्षण भी अच्छा लगा। परन्तु जीवन भर की कमाई पर पानी फिर गया। अत्यधिक बारिश से जो तबाही मैनें झेला, भगवान ऐसा दिन किसी को न दिखाएं। बांक नदी में जब-तक सीढ़ी नुमा रिटर्निंग वाल छठघाट जैसा नहीं बनेगा तब तक मन डरा हुआ है।

*प्रदीप शर्मा–* मध्यमवर्गीय परिवार घर बनाने का सपना जरूर देखता है परन्तु बढ़ती हुई महंगाई से सपने अधूरे रह जाता है। सरगुजा में नोकरी करते बहुत समय गुजर गया। इतना पैसा भी नहीं की मध्य शहर या किसी कालोनी में घर खरीद लुं । थोड़ी बहुत बचत कर इस बस्ती में घर बना लिया हुं परन्तु बुनियादी सुविधाएं का अभाव के कारण परेशानी होती है। नदी,पेड़,पौधे शांतप्रिय वातावरण मुझे और मेरे परिवार को अच्छा लगा। बांक नदी का सौंदर्यीकरण और पुलिया निर्माण का प्रोजेक्ट नगर निगम अम्बिकापुर को बनाना चाहिए।

*श्रीमती अंजू पान्डेय (शिक्षिका एवं साहित्यकार)* यह बस्ती बहुत अच्छी लगती है। यहां के लोग भी बहुत अच्छे और शिक्षित हैं। शंकरघाट हमारे घर से बहुत दूर नहीं है परन्तु छठ के समय इतना ज्यादा भीड़-भाड़ रहता है की मैं छठ्ठपूजा अपने घर पर करती हुं। नदी छठ्ठपूजा घाट का निर्माण हो जाये तो और अधिक सनातन बहनों के लिए सुविधाजनक होगा।

 

*श्रीमती गीता द्विवेदी* (शिक्षिका एवं कवयित्री)–

कवि हृदय व्यक्ति सदैव प्रकृति प्रेमी होता है। कलकल-छलछल बांक नदी की धारा की आवाज से मै मनमुग्ध हो जाती हुं। जब मैं पहली बार इस धारा पर चरण रखी तो मुझे मां गंगा के दर्शन जैसा बोध हुआ और गृह निर्माण की कल्पना जाग गई। परन्तु ऐसी आपदा आई की मन कचोट कर रह गया। मैं आज तक छठ्ठपूजा शुरू नहीं की हुं मां गंगा का आशीर्वाद मिलेगा तो अपने घर के छठ्ठपूजा का दृश्य देखुंगी। इसी लिए रिटर्निंग वाल छठघाट जैसा बन जाये यही मेरी प्रबल इच्छा है।

 

*बिनु कुमार (फोटोग्राफर)-* फोटो ग्राफर होने के नाते प्रकृतिक दृश्य अति लुभावने लगते हैं। नदी का तट होने के नाते इस बस्ती में जहरीले सांप जीव-जंतु आये नजर आते हैं नदी तट पर विद्युतिकरण करने से यहां का सौंदर्य और बढ़ जाएगा। मनमोहक दृश्य हम रात्रि में भी देख सकते हैं।

*कुमारी राधा (छात्रा)* मैं ग्यारहवीं की छात्रा हुं इस बस्ती का नाम वृंदावन बहुत प्यारा है। कभी कभी नदी के पार बस्ती में जाने का मन करता हैं तो पुलिया नहीं होने के करण मन कचोट कर रह जाता है। रोड़ लाईट नहीं होने के कारण मन में डर बना रहता है। बालिकाओं की सुरक्षा की दृष्टि से रोड़ लाईट अति आवश्यक है।

*पवन प्रताप सिंह* —

जिसके पास कम पैसा है वह व्यक्ति घर कहां बनाये, हमेशा सोचता है रोटी कपड़ा और मकान व्यक्ति का मूल आवश्यकता है। इसलिए शहर का अंतिम छोर में भी जैसे तैसे जमीन खरीद कर घर बनाता है। इस बस्ती में जो भी आता है लोगों का बात व्यवहार भाईचारा और खुशहाल वातावरण देखकर बड़ा प्रसन्न हो जाता है। मुझे भी बहुत अच्छा लगा और गृह निर्माण कर बहुत खुशी महसूस कर रहा हुं बुनियादी सुविधाएं के तरफ सरकार का ध्यान आकृष्ट हो और यथाशक्ति निर्माण कार्य हो जाये तो हमलोग भी स्वर्ग जैसा आनन्द प्राप्त करेंगे।

*जनार्दन दुबे*(बुजुर्ग)

जब भी मैं दरवाजे पर बैठ कर नदी के ओर झांकता था तो बड़ा आनंद महसूस होता था। अब रिटर्निंग वाल गीरने से भयावह महसूस होता है। सैकड़ों लोग नदी को पार कर रोज आना जाना करते हैं। नदी में पुलिया निर्माण होने से बहुत बड़ी सुविधा मिल जायेगी। जानवर नदी में पानी पीने जाते हैं। खड़ी दिवाल से सबको परेशानी होती है। इसलिए सीढ़ीनुमा रिटर्निंग वाल बनना हितकारी होगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *