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बिलासपुर । डॉ. सुशील कुमार, वरिष्ठ बाल रोग कंसलटेंट, अपोलो हॉस्पिटल्स बिलासपुर ने बताया क्या किशोरों और युवाओं के लिए मधुमेह की चपेट में आने का ख़तरा बढ़ रहा है इस सवाल का जवाब है हां। इसके लिए मुख्य तौर पर ज़िम्मेदार है, बचपन में ही मोटापे की समस्या में बढ़ोतरी का रुझान। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, दुनिया भर में 5 साल से कम उम्र के 3.5 करोड़ बच्चों का वज़न सामान्य से अधिक है, जबकि 5-19 साल की उम्र के 3.9 करोड़ से ज़्यादा बच्चों और किशोरों का वज़न अधिक है और इनमें 1.6 करोड़ बच्चे मोटापे से ग्रस्त हैं।
बचपन में मोटापे की समस्या बढ़ रही है जिसे पहले केवल विकसित देशों की समस्या माना जाता था। हालांकि, अब यह निम्न और मध्यम आय वाले देशों में भी बढ़ रहा है। इसकी वजह से कम उम्र के लोगों में टाइप 2 डायबिटीज़ मेलिटस (टी2डीएम), जो कभी दुर्लभ माना जाता था, अब आम होता जा रहा है। 10 साल के एक अध्ययन से पता चला है कि 20-39 वर्ष की आयु के युवा वर्ग में टी2डीएम का प्रचलन 36प्रतिशत बढ़ गया है। इस अध्ययन में यह भी पाया गया कि युवाओं के बीच इसके प्रसार में 120प्रतिशत की वृद्धि हुई है, साथ ही कार्डियोमेटाबोलिक जोखिम में भी काफी बढ़ोतरी हुई है। मोटापा और मधुमेह का पारिवारिक इतिहास दोनों समूहों में इसके बढ़ते प्रचलन के लिए प्रमुख रूप से योगदान करता हैं।
डायबिटीज़ मूलतः दो प्रकार का होता है। पहला है टाइप 1 डायबिटीज मेलिटस (टी1डीएम), जो एक दीर्घकालिक ऑटोइम्यून रोग है जो अग्न्याशय (पैनक्रियाज़) को इंसुलिन बनाने से रोकता है, जिसके लिए नियमित इंसुलिन इंजेक्शन की आवश्यकता होती है। यह आमतौर पर युवा आबादी में दिखता है। दूसरा है टाइप 2 डायबिटीज (टी2डीएम), जो युवाओं और सामान्य भारतीय आबादी में बहुत अधिक हो रहा है। टाइप 2 मधुमेह में, अग्न्याशय पर्याप्त इंसुलिन नहीं बनाता है या इंसुलिन प्रतिरोध होता है। मोटापे सहित जेनेटिक्स और जीवनशैली सम्बन्धी कारक टाइप २ मधुमेह होने के आसार बढ़ाते है, जो जनरेशन जेड के लिए एक गंभीर स्वस्थ्य चेतावनी है।

