कुसमी( अमित सिंह) ।
समान नागरिक संहिता(UCC) के मुद्दे पर इस समय देशभर में बहस छिड़ी हुई है. इस मुद्दे पर केंद्र की मोदी सरकार को कई राजनीतिक दलों का समर्थन मिल चुका है तो वहीं कुछ पार्टियां खुलकर इसका विरोध कर रहे हैं
वही सुप्रीम कोर्ट बार-बार कह रही है कॉमन सिविल कोड लाओ । किंतु जानकारी हेतु बता दें की संविधान के अनुच्छेद 370 ,371 एवं 372 कुछ और ही कहता है, भारत विविधताओं भरा देश है देश का हर राज्य भूगोल और संस्कृति के हिसाब से अलग-अलग है. कुछ राज्यों की संस्कृति, राजनीतिक और भौगोलिक परिस्थितियों के चलते संविधान में विशेष प्रावधान किए गए हैं। अनुच्छेद 371 में कई राज्यों के लिए विशेष प्रावधान बनाए गए हैं संविधान के भाग 21 में बनाए गए अस्थाई संक्रमण कालीन पर विशेष प्रावधानों में अनुच्छेद 371 भी शामिल है, इसमें शामिल सभी राज्यों के लिए कुछ विशेष प्रावधान हैं, आदिवासियों, अनुसूचित जनजातियों के रीति- रिवाज , परंपरा अलग-अलग विवाह, उत्तराधिकारी कानून यह सब अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग हैं, संविधान के अनुच्छेद 244/ 1 के प्रावधान पांचवी अनुसूची प्रावधान के अनुसार कोई भी कानून अधिसूचित अनुसूचित जनजातियों के रीति रिवाज, परंपरा ,शादी विवाह ,उत्तराधिकार एवं गांव की स्थापना पर हस्तक्षेप नहीं करेगा।
इसी कड़ी में आज सर्व आदिवासी समाज ब्लॉक इकाई कुसमी के द्वारा समाज के मुखिया ,एवम पूर्व प्राचार्य राजेंद्र उरांव के अगुवाई में अत्यधिक संख्या में आदिवासी समाज के द्वारा यू.सी.सी. के विरोध में अपनी मांगों को लेकर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग अध्यक्ष डॉक्टर रामेश्वर उरांव नई दिल्ली, छत्तीसगढ़ के राज्यपाल विश्व भूषण हरिचंदन एवं जनजाति मंत्री अर्जुन मुंडा राष्ट्रीय जनजाति मंत्रालय भारत सरकार के नाम अनुविभागीय अधिकारी राजस्व अनमोल विवेक टोप्पो को ज्ञापन सौंपा। इस संबंध में राजेंद्र उरांव ने बताया कि देश भर के आदिवासी अनुसूचित जातियों की कस्टमरी ला यानी हिंदू, मुस्लिम ,ईसाई पर्सनल ला से विपरीत शादी उत्तराधिकार इत्यादि के अलग-अलग रीति- रिवाज, परंपरा के अनुसार कस्टमरी ला को समाप्त कर एक समान नागरिक संहिता हम पर भी लागू किया जाएगा, एक समान नागरिक संहिता यूनिफॉर्म सिविल कोड हम देशभर के अनुसूचित जनजातियों पर लागू होने के साथ ही संविधान में अधिसूचित हमारी अनुसूचित जनजाति यानी एसटी का स्टेटस समाप्त हो जाएगा और क्योंकि जल, जंगल जमीन ,खनिज आदि पर आए सुप्रीम कोर्ट के कई तरह के जजमेंट देशभर में लागू जमीन के कानून टेनेंसी एक्ट और लैंड रिवेन्यू कोर्ट में एसटी और एससी के जमीन के विशेष अधिकार यानी एसटी की जमीन एसटी को ही बिकेगी एवं एस सी की जमीन एस सी को ही बिकेगी या अभी समाप्त हो जाएगा।
इस कारण सर्व आदिवासी समाज ने यह मांग किया कि संविधान के अनुच्छेद 44 के तहत राज्य की नीति निर्देशक तत्व की बाध्यता ना होने के कारण तथा संविधान पूर्व करार संधि होने के कारण एक समान नागरिक संहिता को समस्त आदिवासी समुदाय पर आदिवासी क्षेत्र में लागू न करें, अन्यथा माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा इस संविधानिक संकट द्वारा संज्ञान लेने पर देश के समस्त आदिवासी क्षेत्रों की विलय पर वाइट पेपर एग्रीमेंट, संविधान सभा में आदिवासियों के प्रतिनिधि, संविधान सभा में आदिवासी क्षेत्र के लिए लिखित कई वाद-विवाद, ब्रिटिश एलटी का 3 जून 1947 का प्लान , स्वतंत्रता अधिनियम 1947 ,अनुच्छेद 370 ,71 ,72 ,एवम 13 पर प्रश्न खड़ा हो जाएगा, आदिवासियों की बहुमूल्य प्रथा ,संस्कृति इत्यादि सब पर खतरा मंडराने लगेगा, आदिवासी समाज जैसा अपना जीवन यापन बिना प्रकृति के दोहन के कर रहा है उसे वैसा ही जीने का अधिकार मिलना चाहिए उनके ऊपर किसी भी बाहरी या संविधान के नियमों को ना छुपा जाए अगर यह देखा जाए तो आज के समय में वनंचलो में रहने वाले बिरजिया, पांडे, बैगा,इत्यादि जनजाति जो हजारों वर्षों से हमारे वनांचल क्षेत्रों में निवासरत है आज विलुप्त होने की कगार पर है अगर यही स्थिति रही तो आने वाले समय में आदिवासियों का अस्तित्व धीरे-धीरे मिट जाएगा जिससे संवैधानिक संकट उत्पन्न होगा ।
ज्ञापन कार्यक्रम में सर्व आदिवासी समाज के देवान मूली पड़हा राम चंद्र निकुंज, पार्षद ललित निर्मल निकुंज, ज्ञान प्रकाश बड़ा, सौरभ कुमार,उत्पल कुमार,पीतांबर राम,जितेंद्र कुमार, नवल साय पैकरा, धीरजन राम, संकल्प भगत, ललित सुमन,संजीव भगत, नासरित मिंज, नगर पंचायत अध्यक्ष गोवर्धन भगत ,जनपद अध्यक्ष कुसमी हुमन्त सिंह,जनपद सदस्य खसरु राम बुनकर, बालेश्वर राम मंडी अध्यक्ष ,सुनीता भगत , कमीला तिग्गा, श्री मति मनीषा ,सरपंच देवरी शशि टोप्पो, मैत्रावती पैकरा ,सीमा भगत ,शीतल न्यूटन, विनीता बघेल ,कंचन कुसुम , शोषन भगत एवं भरी संख्या में सर्व आदिवासी समाज के लोग उपस्थित रहे